आज से आपके लिए पेश कर रहा हूं एक ऐसी लडकी की कहानी जिसने अपनी जिंदगी में कभी हार नहीं मानी मुश्किले चट्टानों की तरह उसकी जिंदगी में थी , मगर वो अपनी पूरी वफादारी और मजबूत ह्रदय के साथ जिंदगी से झूझती रही.. बिना किसी मजबूत सहारे के ..!
ऐसी औरतें कमजोर लड़कियों के लिए मिसाल है ! तो पेश है "दास्तान ए अश्क"
-साबीरखान
पार्ट-1
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हीर आंखदी जोगिआ झुठ आखे..
कौन रूथ्डे यार मनावडा आये
मेनु कोई न मिलीया मे ढूंढ थकी
जो गिया नु मोड लियव्दा आए
(हिर केहती है अय जोगी.. झूठ केहते हो तूम.. कौन रुठे हूवे यार को मनाता है
मुझे कोई भी एसा न मिला
मै उसे ढूंढके थक गई जो गये हुये को वापस ले आता है)
यह कहानी शुरू होती है पंजाब से..!
पंजाब यानी पांच आब.. पांच दरिया.. पंजाब को 5 दरियाव( सतलज, जेलम चनाब वगैरा) की धरती कहा जाता है!
और इसी धरती पर एक ऐसी लड़की ने जन्म लिया जिसके बहोत ही उंचे उंचे ख्वाब थे!
बडे बड़े सपने थे!
और उन ख्वाबों को पूरा करने का हौसला भी रखती है!
और शायद उसकी तकदीर या उसके आसपास के लोग, खुद उसके अपने जो उसके सपनों को कभी पूरा होने देना ही नहीं चाहते थे?
उसके सपनों की परवाज हमेशा अधूरी ही रही
उसके टूटे हुए सपने उन सपनों की किरचियां हमेंशा नासूर बनकर सारी उमर उसके दिल को कचोटती रही
कहते हैं भगवान जब भी देता है झोली भर के देता है किसी को सुख तो किसी को दुख! किसी को ढेर सारे अरमान तो किसी को उतने ही सदमे!!
लेकिन भगवान ने न जाने उसकी किस्मत में क्या लिखा था!
उसको सारे गुन तो दिए थे मगर उसकी झोली खाली रख दी थी!
सब के बीच होने के बावजूद वह जैसे दुनिया में बिल्कुल अकेली तनहा थी! उसको सुनने वाला कोई नहीं ना किसी को वह अपने दिल की बात बता सकती थी! उसके दिल में उठने वाली लहरें उफन कर वापस शांत हो जाती थी!
पंजाब का एक छोटा सा कस्बा, और उस कस्बे में अपने आलीशान रुतबे से लोगों की नजरों को चकाचौंध कर देने वाली कोठी सीना तान के खड़ी थी!
जिसको रोशिनी के जगमगाट से दुल्हन की तरह सजाया गया था!
कोठी की रौनक से जाहिर हो रहा था कि वहां किसी की शादी हो रही थी!
शादी थी लाला करोड़ीमल के इकलौते बेटे लाला वेद प्रकाश की!
ऊंचा लंबा कद लेकिन रंग दबा हुआ!
सात बहनों का अकेला भाई लाला वेद प्रकाश..!
बहुत ही धैर्यवान शालीन और विवेकी पुत्र ने इस तरह से घर और बिजनेस को संभाला कि लाला करोड़ीमल समय से पहले ही रिटायर हो गए!
आज उनकी शादी की रौनक देखते ही बनती थी!
सभी बहने और परिवार के सदस्य शादी में झूम रहे थे!
कोई गा रहा था ! कोई नाच रहा था! माहौल को देख कर खुद वेद प्रकाश जी भी फूले नहीं समा रहे थे! उनकी खुशी फूलों की तरह खिले उनके चेहरे से जाहिर हो रही थी!
खुशी क्यों ना हो इतनी सुंदर बीवी जो उन्हें मिली थी!
खुद सांवले थे मगर उनकी होने वाली बीवी जैसे आसमा से उतरा हुआ चांद! खुदा ने सलीके से जैसे उसके रूप को बनाया होगा..! जन्नत से आई हुई हूर जैसे..!
पूरा माहौल जोश में थिरक रहा था! और पंजाबियों को मदहोश बनाकर झूमने पर मजबूर कर देने वाला वह गाना बज रहा था..!
" आंखों की सारी मस्तियां मेह में मेरे निचोड दे
दो घुट पिला दे साथिया बाकी मुझ पे रोड दे..
(क्रमशः)